समान वेतन हमारा हक : लेकर ही रहेंगे।
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आरंभ में ही स्पष्ट कर दूँ कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर ऊंगली उठाना मेरा मकसद नहीं। परंतु , दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है। एक बात मेरे जेहन में बार-बार आ रही है कि हम बिहार के नियोजित शिक्षक समान काम के बदले समान वेतन की मांग को लेकर अदालत गये। और पटना उच्च न्यायालय ने हमारी इस जायज मांग के पक्ष में फैसला भी दिया।
सरकार को यह बात पची नहीं और वह सुप्रीम कोर्ट चली गयी जहाँ 29 जनवरी को सुनवाई के दौरान सरकार की SLP खारिज नहीं हुई जबकि 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने समान काम के आधार पर समान वेतन देने संबंधी अपने आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है कि पैसे के अभाव का बहाना बनाकर किसी को कम पारिश्रमिक नहीं दिया जा सकता। कृत्रिम मानदंड अपनाकर किसी की मजबूरी का फायदा उठाकर किसी को कम वेतन नहीं दिया जा सकता। इसके बावजूद, बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को समान वेतन देने के मामले में SC से status quo ( यथास्थिति ) बहाल करवाने और समान वेतन कैसे दिया जा सकता है इसके लिए कमिटी गठित कर रिपोर्ट पेश करने का अधिकार खुद के पास रखवाने में कामयाब हो गयी।
तो क्या हम बैकफुट पर हैं ? किंचित नहीं ! परंतु , गौरतलब है कि बिहार सरकार अपनी कमिटियों और उसकी रिपोर्ट के लिए कुख्यात है। इसकी शातिर चाल ने 2015 के आंदोलन में 5200-20200 का वेतनमान 2000, 2400, 2800 ग्रेड पे के साथ देने के नाम पर आंदोलन समाप्त करा दिया, परंतु बाद में धोखाधड़ी कर ऐसा संकल्प जारी किया जिसमें वर्तमान समय में शिक्षक बनने के सारे मानक पूरे करनेवाले tet/stet शिक्षकों को दो वर्ष की सेवा पूर्ण करने तक ग्रेड पे से वंचित कर दिया। इतना ही नहीं जिन्हें तत्काल वेतनमान का लाभ मिला, उन्हें भी उक्त वेतनमान पूर्ण न देकर तोड़ मरोड़कर दिया गया।
बात सातवें वेतनमान की करें तो बेगूसराय की सभा में मुख्यमंत्री ने सभी नियोजित शिक्षकों को सातवें वेतनमान का लाभ देने की जो घोषणा की थी, उससे नियोजित शिक्षकों में यह आस जगी थी कि ग्रेड पे के प्रारूप से वंचित नये वेतनमान में 2015 से चली आ रही सारी विसंगतियाँ दूर हो जायेंगी और अप्रशिक्षित शिक्षकों के लिए भी न्यूनतम वेतन 18000 के मानक के तहत नये द्वार खुलेंगे। लेकिन यहाँ भी धोखा हुआ। नियोजित शिक्षकों को वेतनमान देने के लिए अलग से कमिटी बनाने का खेल सरकार ने खेला जिसने सातवें वेतन आयोग की सिफारिश द्वारा बनायी गयी वेतन संरचना से बिल्कुल अलग वेतन संरचना लाकर रख दिया जिसमें विसंगतियों को तो दूर न ही किया गया, उपर से यह बाद में योगदान किये शिक्षकों को पूर्व के शिक्षकों से ज्यादा वेतन निर्धारित करवाता है।
सरकार की कमिटी का एक और सजीव उदाहरण है -- चायनीज सेवाशर्त बनाने हेतु गठित कमिटी की रिपोर्ट का दो वर्षों से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद न आना।
विचारणीय है कि नियोजित शिक्षकों से वैमनस्यता रखनेवाली बिहार सरकार जो 29 जनवरी को समान काम के आधार पर SC को समान वेतन देने हेतु सीधा आर्डर न करने देने अथवा हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखने या यूँ कहें कि अपनी SLP खारिज न होने देने में कामयाब रही। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के पटल पर यह बात लाने में कामयाब रही कि कुछ राज्य सरकारें तीन या पाँच वर्ष अथवा उससे अधिक की अवधि तक शिक्षकों को कम वेतन देती है और बाद में समुचित वेतनमान देती है। तो क्या अपनी कमिटी की रिपोर्ट में वह इस तरह का प्रस्ताव ला सकती है जिसमें certain time bound के साथ बिहार के नियोजित शिक्षकों को समान वेतन देने की बात वह करे ?
यदि ऐसा होता है तो यह बहुत गलत होगा, क्योंकि हमने काम के आधार पर समान वेतन की मांग की थी, न कि समयावधि के आधार पर। और फिर 2016 में हरियाणा सरकार के मामले में स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने काम के आधार पर समान वेतन देने का आदेश दिया था, जिसके आलोक में बिहार के नियोजित शिक्षक भी अदालत का रूख किये थे।
बात शैक्षणिक योग्यता की भी है, परंतु इस मामले में सरकार को सफलता मिलने की गुंजाइश न के बराबर है।
और जहाँ तक बात समान वेतन देने हेतु किसी प्रकार की परीक्षा के आयोजन की है, तो बिहार के सारे नियोजित शिक्षक मानक परीक्षा पास हैं। अप्रैल 2010 में RTE ACT लागू होने के पूर्व नियोजित शिक्षक सरकार द्वारा आयोजित दक्षता और प्रशिक्षण परीक्षा उत्तीर्ण तो ACT लागू होने के बाद नियोजित TET/STET उत्तीर्ण और प्रशिक्षित हैं और जो अप्रशिक्षित हैं उन्हें मार्च 2019 तक प्रशिक्षण दिलाने की जिम्मेवारी सरकार की है (प्रारंभिक के मामले में यह D.EL.ED कोर्स चल भी रहा और बचे हुए लगभग दो हजार माध्यमिक/उच्चतर माध्यमिक शिक्षकों के मामले में सरकार इसके लिए क्या करेगी, इस लक्ष्य को कैसे पूरा करेगी, वो जाने। नहीं हुआ तो कोर्ट का रुख )।
मतलब यह कि NCTE के गाईडलाईन के मुताबिक शिक्षक बनने की अहर्ता शिक्षक पूरा कर ही रहे हैं तो फिर किसी नयी परीक्षा के आयोजन की बात क्यों ? यदि NCTE द्वारा तय मानदंड कमतर हैं तो ऐसी संस्था के होने का क्या औचित्य ? बंद करवा दे कोर्ट या भारत सरकार इसे !
कुल मिलाकर शातिर बिहार सरकार की गतिविधियाँ संदेहास्पद है और यह समयावधि के आधार पर शिक्षकों में भेद उत्पन्न करने की कोशिश कर सकती है। देखनेवाली बात होगी कि क्या विधायिका न्यायपालिका को प्रभावित कर जाती है या न्याय की रक्षा होती है।
परिवर्तनकारी शिक्षक संघ की नजर सरकार की हर गतिविधि पर है और इस बार उसकी इस तरह की कोई भी नीति का संघ जमकर विरोध करेगा। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 2015 में tet/stet उत्तीर्ण शिक्षकों के लिए दो साल के गैर वाजिब प्रोबेशन पीरियड लगाकर हड़ताल के दौड़ान हुए समझौते के साथ सरकार की धोखाधड़ी मानकर यह संघ इसके खिलाफ भी उच्च न्यायालय में है। और आनेवाले समय में किसी भी रूप में शिक्षकों में विभेद उत्पन्न करने की हर चाल को संघ बर्दाश्त नहीं करेगा और उसका माकूल जवाब देगा।
अरुण क्रांति कुशवाहा
प्रदेश अध्यक्ष
परिवर्तनकारी माध्यमिक/उच्चतर माध्यमिक शिक्षक संघ, बिहार।
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आरंभ में ही स्पष्ट कर दूँ कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर ऊंगली उठाना मेरा मकसद नहीं। परंतु , दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है। एक बात मेरे जेहन में बार-बार आ रही है कि हम बिहार के नियोजित शिक्षक समान काम के बदले समान वेतन की मांग को लेकर अदालत गये। और पटना उच्च न्यायालय ने हमारी इस जायज मांग के पक्ष में फैसला भी दिया।
सरकार को यह बात पची नहीं और वह सुप्रीम कोर्ट चली गयी जहाँ 29 जनवरी को सुनवाई के दौरान सरकार की SLP खारिज नहीं हुई जबकि 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने समान काम के आधार पर समान वेतन देने संबंधी अपने आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है कि पैसे के अभाव का बहाना बनाकर किसी को कम पारिश्रमिक नहीं दिया जा सकता। कृत्रिम मानदंड अपनाकर किसी की मजबूरी का फायदा उठाकर किसी को कम वेतन नहीं दिया जा सकता। इसके बावजूद, बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को समान वेतन देने के मामले में SC से status quo ( यथास्थिति ) बहाल करवाने और समान वेतन कैसे दिया जा सकता है इसके लिए कमिटी गठित कर रिपोर्ट पेश करने का अधिकार खुद के पास रखवाने में कामयाब हो गयी।
तो क्या हम बैकफुट पर हैं ? किंचित नहीं ! परंतु , गौरतलब है कि बिहार सरकार अपनी कमिटियों और उसकी रिपोर्ट के लिए कुख्यात है। इसकी शातिर चाल ने 2015 के आंदोलन में 5200-20200 का वेतनमान 2000, 2400, 2800 ग्रेड पे के साथ देने के नाम पर आंदोलन समाप्त करा दिया, परंतु बाद में धोखाधड़ी कर ऐसा संकल्प जारी किया जिसमें वर्तमान समय में शिक्षक बनने के सारे मानक पूरे करनेवाले tet/stet शिक्षकों को दो वर्ष की सेवा पूर्ण करने तक ग्रेड पे से वंचित कर दिया। इतना ही नहीं जिन्हें तत्काल वेतनमान का लाभ मिला, उन्हें भी उक्त वेतनमान पूर्ण न देकर तोड़ मरोड़कर दिया गया।
बात सातवें वेतनमान की करें तो बेगूसराय की सभा में मुख्यमंत्री ने सभी नियोजित शिक्षकों को सातवें वेतनमान का लाभ देने की जो घोषणा की थी, उससे नियोजित शिक्षकों में यह आस जगी थी कि ग्रेड पे के प्रारूप से वंचित नये वेतनमान में 2015 से चली आ रही सारी विसंगतियाँ दूर हो जायेंगी और अप्रशिक्षित शिक्षकों के लिए भी न्यूनतम वेतन 18000 के मानक के तहत नये द्वार खुलेंगे। लेकिन यहाँ भी धोखा हुआ। नियोजित शिक्षकों को वेतनमान देने के लिए अलग से कमिटी बनाने का खेल सरकार ने खेला जिसने सातवें वेतन आयोग की सिफारिश द्वारा बनायी गयी वेतन संरचना से बिल्कुल अलग वेतन संरचना लाकर रख दिया जिसमें विसंगतियों को तो दूर न ही किया गया, उपर से यह बाद में योगदान किये शिक्षकों को पूर्व के शिक्षकों से ज्यादा वेतन निर्धारित करवाता है।
सरकार की कमिटी का एक और सजीव उदाहरण है -- चायनीज सेवाशर्त बनाने हेतु गठित कमिटी की रिपोर्ट का दो वर्षों से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद न आना।
विचारणीय है कि नियोजित शिक्षकों से वैमनस्यता रखनेवाली बिहार सरकार जो 29 जनवरी को समान काम के आधार पर SC को समान वेतन देने हेतु सीधा आर्डर न करने देने अथवा हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखने या यूँ कहें कि अपनी SLP खारिज न होने देने में कामयाब रही। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के पटल पर यह बात लाने में कामयाब रही कि कुछ राज्य सरकारें तीन या पाँच वर्ष अथवा उससे अधिक की अवधि तक शिक्षकों को कम वेतन देती है और बाद में समुचित वेतनमान देती है। तो क्या अपनी कमिटी की रिपोर्ट में वह इस तरह का प्रस्ताव ला सकती है जिसमें certain time bound के साथ बिहार के नियोजित शिक्षकों को समान वेतन देने की बात वह करे ?
यदि ऐसा होता है तो यह बहुत गलत होगा, क्योंकि हमने काम के आधार पर समान वेतन की मांग की थी, न कि समयावधि के आधार पर। और फिर 2016 में हरियाणा सरकार के मामले में स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने काम के आधार पर समान वेतन देने का आदेश दिया था, जिसके आलोक में बिहार के नियोजित शिक्षक भी अदालत का रूख किये थे।
बात शैक्षणिक योग्यता की भी है, परंतु इस मामले में सरकार को सफलता मिलने की गुंजाइश न के बराबर है।
और जहाँ तक बात समान वेतन देने हेतु किसी प्रकार की परीक्षा के आयोजन की है, तो बिहार के सारे नियोजित शिक्षक मानक परीक्षा पास हैं। अप्रैल 2010 में RTE ACT लागू होने के पूर्व नियोजित शिक्षक सरकार द्वारा आयोजित दक्षता और प्रशिक्षण परीक्षा उत्तीर्ण तो ACT लागू होने के बाद नियोजित TET/STET उत्तीर्ण और प्रशिक्षित हैं और जो अप्रशिक्षित हैं उन्हें मार्च 2019 तक प्रशिक्षण दिलाने की जिम्मेवारी सरकार की है (प्रारंभिक के मामले में यह D.EL.ED कोर्स चल भी रहा और बचे हुए लगभग दो हजार माध्यमिक/उच्चतर माध्यमिक शिक्षकों के मामले में सरकार इसके लिए क्या करेगी, इस लक्ष्य को कैसे पूरा करेगी, वो जाने। नहीं हुआ तो कोर्ट का रुख )।
मतलब यह कि NCTE के गाईडलाईन के मुताबिक शिक्षक बनने की अहर्ता शिक्षक पूरा कर ही रहे हैं तो फिर किसी नयी परीक्षा के आयोजन की बात क्यों ? यदि NCTE द्वारा तय मानदंड कमतर हैं तो ऐसी संस्था के होने का क्या औचित्य ? बंद करवा दे कोर्ट या भारत सरकार इसे !
कुल मिलाकर शातिर बिहार सरकार की गतिविधियाँ संदेहास्पद है और यह समयावधि के आधार पर शिक्षकों में भेद उत्पन्न करने की कोशिश कर सकती है। देखनेवाली बात होगी कि क्या विधायिका न्यायपालिका को प्रभावित कर जाती है या न्याय की रक्षा होती है।
परिवर्तनकारी शिक्षक संघ की नजर सरकार की हर गतिविधि पर है और इस बार उसकी इस तरह की कोई भी नीति का संघ जमकर विरोध करेगा। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 2015 में tet/stet उत्तीर्ण शिक्षकों के लिए दो साल के गैर वाजिब प्रोबेशन पीरियड लगाकर हड़ताल के दौड़ान हुए समझौते के साथ सरकार की धोखाधड़ी मानकर यह संघ इसके खिलाफ भी उच्च न्यायालय में है। और आनेवाले समय में किसी भी रूप में शिक्षकों में विभेद उत्पन्न करने की हर चाल को संघ बर्दाश्त नहीं करेगा और उसका माकूल जवाब देगा।
अरुण क्रांति कुशवाहा
प्रदेश अध्यक्ष
परिवर्तनकारी माध्यमिक/उच्चतर माध्यमिक शिक्षक संघ, बिहार।
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