न्यायालय में बिहार शिक्षा पर उठते सवाल-: हांफती सरकार!--- 29 जनवरी ,2018/-- बिहार की प्राथमिक शिक्षा में हुएअराजक तरीके से बहाल शिक्षामित्रों को लेकर मुख्य न्यायालय से उच्चतम न्यायालय तक अफरा-तफरी मची है /यह अफरा-तफरी 10 साल पहले भी उनकी बहाली के वक्त मची थी /तब सरकार ने ₹6000 माहवारी के मानदेय पर उन्हें बहाल करवाया था /बहाली का मुख्य अधिकार पंचायत के मुखिया लोगों के हाथ में सौंपा गया था /वह बहाली बोली के आधार पर हुई थी/ 2-3 लाख रुपए बतौर नजराना लेकर शिक्षामित्रों को बहाल किया गया था /बहाली के वक्त दो रजिस्टर रखे गए थे /एक फर्जी और एक वाजिब /फर्जी रजिस्टर पर सभी आवेदक शिक्षामित्रों के हस्ताक्षर होते थे और जिन शिक्षामित्रों को बहाल करना था /उनके हस्ताक्षर फर्जी तथा वाजिब रजिस्टर , दोनों पर कराया जाता था और जिन्हें नहीं करना था, उनके दस्तखत सिर्फ फर्जी रजिस्टर परहोते थे/ ताकि जांच में बहाली के नाम पर हुई "धोखाधड़ी" भविष्य में पकड़ी न जासके/( धोखाधड़ी से हुई इस बहाली को लेकर गजब की हाय तौबा मची/ सभी अस्तर पर दौड़ते -दौड़ते अभ्यर्थी थक गए / कुछ घर बैठ गए / क्योंकि इस बहाली मेंलीगई राशि बड़ी थी और उसमैं सरकारी तंत्र खुद संलग्न था /इसीलिए उसके द्वारा पारदर्शी जांच की संभावना ही नहीं बनती थी /हार - थाक कर अंत में कुछ अभ्यर्थी उच्च न्यायालय पटना पहुंचे और अर्जी लगाई/ न्यायालय ने विशेष निगरानी की जांच बैठाई /वह जांच कछुआ गति से चल रही है /देखिए, उसका कैसे और कब ,किस रूप में हश्र सामने आता है?( नई अफरा-तफरी इस संदर्भ में नए मामले को लेकर बिहार सरकार के सर्वोच्च न्यायालय में जाने पर मची है/ हुआ यह है कि जिन 2:30-3 लाख शिक्षा मित्रों की बहाली की जांच उच्च न्यायालय के आदेश पर निगरानी कर रही है और जो लटकी पढ़ी हुई है ?उन्हीं शिक्षामित्रों ने 10 साल की अपनी सेवा पूर्ण होने पर उच्च न्यायालय में अर्जी देकर सरकार से "समान काम समान वेतन" की मांग की/ पिछले महीने उच्च न्यायालय ने उनकी अर्जी की सुनवाई में बिहार सरकार को उन्हें स्थाई शिक्षकों की तरह वेतन देने का आदेश सुनाया/ सरकार दौड़ें -दौड़ें उच्चतम न्यायालय गई/ इस केस में उच्चतम न्यायालय की कल की सुनवाई में राज्य सरकार ने जो दलील दी ,उस पर उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को फटकार लगाई/ सरकार ने उन शिक्षकों के वेतन देने पर भारी आर्थिक बोझ बढ़ने तथा उनकी योग्यता पर सवाल उठाया? उच्चतम न्यायालय ने इन्हीं दोनों दलीलों को लेकर फटकार लगाई /सरकार के धनराशि - बोझको ध्यान में रखकर उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय सरकार से जवाब मांगा है/ इसलिए कि शिक्षा पर खर्च होने वाली राशि में 60 एवं 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी क्रमश:केंद्र एवं राज्य सरकार की होती है/ और शिक्षामित्रों की योग्यता के सवाल पर बिहार सरकार के मुख्य सचिव को जांच की जवाबदेही सौंपी /उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख 15 मार्च को रखी है/ शिक्षामित्रों की योग्यता पर राज्य सरकार का सवाल खड़ा करना ,वह भी एक दशक बाद , उच्चतम न्यायालय को भी आश्चर्य में डाला है और आवाम को भी? नियत साफ होती और इरादा पक्का होता तो ,सब गड़बड़ झाला पहले ही मिट जाता? संपत्ति, उच्च न्यायालय के आदेश एवं उच्चतम न्यायालय के सवालों से राज्य सरकार के माथे पर पसीना आ गई है? सब गलती बहाली में हुई/ बहाली की वह प्रक्रिया ही गलत थी और वह प्रक्रिया खुद सरकार ने बनाई थी/ सरकार हांफती दिख रही है/ आज सरकार "सांप -छुछुंदर" की स्थितिमेंहै/ और बिहार की शिक्षा -व्यवस्था कबाड़ की स्थिति में?-- अर्जुन भारतीय, सदन्यायालय में बिहार शिक्षा पर उठते सवाल-: हांफती सरकार!--- 29 जनवरी ,2018/-- बिहार की प्राथमिक शिक्षा में हुएअराजक तरीके से बहाल शिक्षामित्रों को लेकर मुख्य न्यायालय से उच्चतम न्यायालय तक अफरा-तफरी मची है /यह अफरा-तफरी 10 साल पहले भी उनकी बहाली के वक्त मची थी /तब सरकार ने ₹6000 माहवारी के मानदेय पर उन्हें बहाल करवाया था /बहाली का मुख्य अधिकार पंचायत के मुखिया लोगों के हाथ में सौंपा गया था /वह बहाली बोली के आधार पर हुई थी/ 2-3 लाख रुपए बतौर नजराना लेकर शिक्षामित्रों को बहाल किया गया था /बहाली के वक्त दो रजिस्टर रखे गए थे /एक फर्जी और एक वाजिब /फर्जी रजिस्टर पर सभी आवेदक शिक्षामित्रों के हस्ताक्षर होते थे और जिन शिक्षामित्रों को बहाल करना था /उनके हस्ताक्षर फर्जी तथा वाजिब रजिस्टर , दोनों पर कराया जाता था और जिन्हें नहीं करना था, उनके दस्तखत सिर्फ फर्जी रजिस्टर परहोते थे/ ताकि जांच में बहाली के नाम पर हुई "धोखाधड़ी" भविष्य में पकड़ी न जासके/( धोखाधड़ी से हुई इस बहाली को लेकर गजब की हाय तौबा मची/ सभी अस्तर पर दौड़ते -दौड़ते अभ्यर्थी थक गए / कुछ घर बैठ गए / क्योंकि इस बहाली मेंलीगई राशि बड़ी थी और उसमैं सरकारी तंत्र खुद संलग्न था /इसीलिए उसके द्वारा पारदर्शी जांच की संभावना ही नहीं बनती थी /हार - थाक कर अंत में कुछ अभ्यर्थी उच्च न्यायालय पटना पहुंचे और अर्जी लगाई/ न्यायालय ने विशेष निगरानी की जांच बैठाई /वह जांच कछुआ गति से चल रही है /देखिए, उसका कैसे और कब ,किस रूप में हश्र सामने आता है?( नई अफरा-तफरी इस संदर्भ में नए मामले को लेकर बिहार सरकार के सर्वोच्च न्यायालय में जाने पर मची है/ हुआ यह है कि जिन 2:30-3 लाख शिक्षा मित्रों की बहाली की जांच उच्च न्यायालय के आदेश पर निगरानी कर रही है और जो लटकी पढ़ी हुई है ?उन्हीं शिक्षामित्रों ने 10 साल की अपनी सेवा पूर्ण होने पर उच्च न्यायालय में अर्जी देकर सरकार से "समान काम समान वेतन" की मांग की/ पिछले महीने उच्च न्यायालय ने उनकी अर्जी की सुनवाई में बिहार सरकार को उन्हें स्थाई शिक्षकों की तरह वेतन देने का आदेश सुनाया/ सरकार दौड़ें -दौड़ें उच्चतम न्यायालय गई/ इस केस में उच्चतम न्यायालय की कल की सुनवाई में राज्य सरकार ने जो दलील दी ,उस पर उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को फटकार लगाई/ सरकार ने उन शिक्षकों के वेतन देने पर भारी आर्थिक बोझ बढ़ने तथा उनकी योग्यता पर सवाल उठाया? उच्चतम न्यायालय ने इन्हीं दोनों दलीलों को लेकर फटकार लगाई /सरकार के धनराशि - बोझको ध्यान में रखकर उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय सरकार से जवाब मांगा है/ इसलिए कि शिक्षा पर खर्च होने वाली राशि में 60 एवं 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी क्रमश:केंद्र एवं राज्य सरकार की होती है/ और शिक्षामित्रों की योग्यता के सवाल पर बिहार सरकार के मुख्य सचिव को जांच की जवाबदेही सौंपी /उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख 15 मार्च को रखी है/ शिक्षामित्रों की योग्यता पर राज्य सरकार का सवाल खड़ा करना ,वह भी एक दशक बाद , उच्चतम न्यायालय को भी आश्चर्य में डाला है और आवाम को भी? नियत साफ होती और इरादा पक्का होता तो ,सब गड़बड़ झाला पहले ही मिट जाता? संपत्ति, उच्च न्यायालय के आदेश एवं उच्चतम न्यायालय के सवालों से राज्य सरकार के माथे पर पसीना आ गई है? सब गलती बहाली में हुई/ बहाली की वह प्रक्रिया ही गलत थी और वह प्रक्रिया खुद सरकार ने बनाई थी/ सरकार हांफती दिख रही है/ आज सरकार "सांप -छुछुंदर" की स्थितिमेंहै/ और बिहार की शिक्षा -व्यवस्था कबाड़ की स्थिति में?-- अर्जुन भारतीय, सदस्य ,हिंदी सलाहकार समिति, केंद्रीय कृषि मंत्रालय ,भारत सरकार,स्य ,हिंदी सलाहकार समिति, केंद्रीय कृषि मंत्रालय ,भारत सरकार,
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