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*नियोजित शिक्षकों के "समान काम समान वेतन" के मुद्दे पर तर्कपूर्ण प्रस्ताव के साथ अगली तिथि-15.03.2018 को उपस्थित हो बिहार सरकार: सुप्रीम कोर्ट,नई दिल्ली।*
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*शिक्षक साथियो,*
*राज्य सरकार की ओर से बहस करते हुए "श्री गोपाल सुब्रह्मण्यम जी" ने यह तर्क दिया कि नियोजित शिक्षक स्थानीय निकायों के कर्मचारी हैं। पुराने शिक्षक राज्य सरकार के कर्मचारी हैं।*
*अतः इन दोनों का कैडर अलग-अलग है,और अलग-अलग कैडर होने के कारण इन्हें "समान काम समान वेतन" नहीं दिया जा सकता है।*
*नियोजित शिक्षक कीओर से बहस की शुरुआत करते हुए संघ के अधिवक्ता देश के नामचीन सीनियर अधिवक्ता "परमजीत सिंह पटवालिया जी" ने कहा:-*
*"नियोजित शिक्षक" और "पुराने शिक्षक" बिहार के अंदर एक ही विद्यालय में समान रूप से सेवा देते हैं। इन दोनों की जिम्मेवारी और सेवा समान है। इन्हें कम वेतन देने के लिए आर्टिफीसियल तरीके की नियमावली बनाकर इनकी बहाली की जा रही है,एवम एक आर्टिफीसियल व्यवस्था बनायी गयी।*
*जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह एक असंवैधानिक व्यवस्था है। हमारे अधिवक्ता ने पूछा कि नियोजित शिक्षको की सेवाशर्त और नियमावली जब राज्य सरकार बनाती है,एवम इनके वेतन का निर्धारण राज्य सरकार करती है। इनकी सारी सुविधाओं का निर्धारण राज्य सरकार करती है। फिर भी केवल नियोजन के लिए स्थानीय निकाय को माध्यम बना देने मात्र से वे गैरसरकारी कर्मी नहीं माने जा सकते।*
*हमारे अधिवक्ता के तर्क को सुनते ही राज्य सरकार के अधिवक्ता ने शिक्षकों की योग्यता पर सवाल उठाया एवम कहे:-*
*नियोजित शिक्षकों की योग्यता सरकारी शिक्षकों की योग्यता के बराबर नहीं है। सरकारी अधिवक्ता के तर्क को काटते हुए स्वयं अदालत ने इस पर तल्ख टिप्पणी किए कि इन सबों के द्वारा 10 दस बेच स्टूडेंट को निकाल चुके है उस समय इनकी योग्यता पे कोई प्रश्न चिन्ह नहीं उठा।*
*एवम अदालत ने पूछा कि "आप इन्हें कम वेतन दे रहे थे तब तो इनकी योग्यता पर सवाल नही उठाए और आज जब यह "समान काम समान वेतन" की मांग करने लगे है तो इनकी योग्यता पर सवाल उठा रहे हैं। यह व्यवस्था ठीक नहीं है।*
*इसके बाद सरकारी अधिवक्ताओं ने बिहार सरकार के वित्तीय संसाधन का हवाला देना शुरू किया । कहा उनके एरियर पर Rs-50,000/- करोड़ खर्च करने होंगे जो राज्य सरकार के बस की बात नहीं है।*
*इतना ही नहीं "समान काम समान वेतन" लागू करने पर प्रतिवर्ष Rs-28,000/- करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।*
*सरकारी अधिवक्ता के इस तर्क को सभी अधिवक्ताओं ने पुरजोर विरोध किया। शिक्षकों की ओर से अधिवक्ताओं ने इस आंकड़े को सरासर गलत करार देते हुए कहा कि राज्य सरकार झूठ बोल रही है। समान वेतन देने पर मात्र Rs-9,800/- करोड़ रुपए खर्च करने होंगे।*
*वही एरियर के रूप में मात्र Rs-7,000/- करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी एवम सबसे बड़ी बात यह है कि यह पूरी राशि राज्य सरकार को ही खर्च नहीं करनी है बल्कि केंद्र सरकार केंद्रांश के रूप में शिक्षा के बजट का 60% राशि देती है।*
*अधिवक्ताओं ने कहा कि बीते कई वर्षों में राज्य सरकार केंद्र से प्राप्त पूरी राशि का उपयोग नहीं कर सकी एवम उस राशि को वापस करना पड़ा।*
*एक ओर जहाँ राज्य सरकार पैसे का उपयोग नहीं कर पा रही है,एवम उसे सरेंडर करना पड़ रहा है। दूसरी ओर पैसे का रोना कोर्ट में रोया जा रहा है। साथ ही शिक्षकों को "समान काम समान वेतन" देने से इनकार किया जा रहा है। यह बिल्कुल राज्य सरकार की मनमानी है।*
*राज्य सरकार के अधिवक्ताओं द्वारा वित्तीय कमी का रोना रोये जाने पर एक बार अदालत ने प्रस्ताव रखा कि यदि राज्य सरकार नियोजित शिक्षकों को आज की तिथि से भी समान वेतन देने की घोषणा कर दे तो एरियर के मुद्दे को समाप्त किया जाए लेकिन राज्य सरकार के अधिवक्ता इस पर राजी नहीं हुए एवम उन्होंने कोर्ट के उस प्रस्ताव पर बिना कोई टिप्पणी किए अपने बहस को जारी रखा।*
*साथ ही धीमे स्वर में अदालत ने टिप्पणी भी की कि शायद सरकार एरियर भी देना चाह रही है।*
*अदालत के इस रूख से स्पष्ट है कि अदालत शिक्षकों के पक्ष में बात करना चाहती है।किंतु वित्तीय मामलों की संवेदनशीलता को देखते हुए राज्य सरकार को भी पूरा अवसर देना चाहती है। सरकार के अधिवक्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का शिक्षकों के अधिवक्ताओं के द्वारा पुरजोर विरोध किए जाने पर विवाद की स्थिति बन गई।*
*साथ ही अदालत ने निर्देशित किया कि मुख्य सचिव स्तर के तीन पदाधिकारियों की एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर एक तर्कपूर्ण युक्तियुक्त प्रस्ताव तैयार कर अगली सुनवाई को यथा दिनांक-15.03.2018 को माननीय सुप्रीम कोर्ट,नई दिल्ली में सरकार उपस्थित हो।*
*चूकिं बीच में यह बात आई है कि पिछले कई वर्षों में राज्य सरकार ने केंद्र उसकी राशि का पूरा-पूरा उपयोग नहीं कर सकने के कारण वापस किया है।*
*जिसके बाद कोर्ट ने भारत सरकार को भी पार्टी बनाया है और उससे स्थिति स्पष्ट करने का आदेश दिया है।*
*जब राज्य सरकार के अधिवक्ता शिक्षकों की योग्यता पर सवाल उठा रहे थे तो हमलोगों के अधिवक्ताओं ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद उसके प्रावधानों के आधार पर ही शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है।*
*दिनांक:-01.04.2010 को "शिक्षा का अधिकार अधिनियम" लागू होने के पश्चात जिन शिक्षकों की नियुक्ति की गई है उसके आधार पर हीं वर्तमान में शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है।*
*साथ ही दिनांक:-01.07.2006 को जिन "शिक्षा मित्रों" को "नियोजित शिक्षक" बनाया गया एवम दिनांक:-01.04.2010 की पहले नियुक्त किया गया। वह उस समय की नियमावली के अनुकूल है।*
*अत: किसी भी साथी को अपनी योग्यता को लेकर मन में भ्रम या संशय पालने की जरूरत नहीं है। फैसला हम लोगों के पक्ष में ही होगा और हम सब एक है खण्डित नहीं होना है न दिग्भर्मित होना है हम जीत चुके है अर्थात सरकार के दिए सभी दलीलों को अदालत ने सीरे से खारिज किए और कहे हाई कोर्ट के द्वारा दिए फैसले सही है।*
*"रख हौसला 15 मार्च वो मंजर भी आएगा!*
*"हमसबों के पास चलकर बिहार सरकार भी आएगा!!"*
*"संसय में न रह ऐ शिक्षक साथियों,मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा!!*
*"समान काम समान वेतन"*
*शिक्षक एकता ज़िंदाबाद।*
*नियोजित शिक्षकों के "समान काम समान वेतन" के मुद्दे पर तर्कपूर्ण प्रस्ताव के साथ अगली तिथि-15.03.2018 को उपस्थित हो बिहार सरकार: सुप्रीम कोर्ट,नई दिल्ली।*
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*शिक्षक साथियो,*
*राज्य सरकार की ओर से बहस करते हुए "श्री गोपाल सुब्रह्मण्यम जी" ने यह तर्क दिया कि नियोजित शिक्षक स्थानीय निकायों के कर्मचारी हैं। पुराने शिक्षक राज्य सरकार के कर्मचारी हैं।*
*अतः इन दोनों का कैडर अलग-अलग है,और अलग-अलग कैडर होने के कारण इन्हें "समान काम समान वेतन" नहीं दिया जा सकता है।*
*नियोजित शिक्षक कीओर से बहस की शुरुआत करते हुए संघ के अधिवक्ता देश के नामचीन सीनियर अधिवक्ता "परमजीत सिंह पटवालिया जी" ने कहा:-*
*"नियोजित शिक्षक" और "पुराने शिक्षक" बिहार के अंदर एक ही विद्यालय में समान रूप से सेवा देते हैं। इन दोनों की जिम्मेवारी और सेवा समान है। इन्हें कम वेतन देने के लिए आर्टिफीसियल तरीके की नियमावली बनाकर इनकी बहाली की जा रही है,एवम एक आर्टिफीसियल व्यवस्था बनायी गयी।*
*जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह एक असंवैधानिक व्यवस्था है। हमारे अधिवक्ता ने पूछा कि नियोजित शिक्षको की सेवाशर्त और नियमावली जब राज्य सरकार बनाती है,एवम इनके वेतन का निर्धारण राज्य सरकार करती है। इनकी सारी सुविधाओं का निर्धारण राज्य सरकार करती है। फिर भी केवल नियोजन के लिए स्थानीय निकाय को माध्यम बना देने मात्र से वे गैरसरकारी कर्मी नहीं माने जा सकते।*
*हमारे अधिवक्ता के तर्क को सुनते ही राज्य सरकार के अधिवक्ता ने शिक्षकों की योग्यता पर सवाल उठाया एवम कहे:-*
*नियोजित शिक्षकों की योग्यता सरकारी शिक्षकों की योग्यता के बराबर नहीं है। सरकारी अधिवक्ता के तर्क को काटते हुए स्वयं अदालत ने इस पर तल्ख टिप्पणी किए कि इन सबों के द्वारा 10 दस बेच स्टूडेंट को निकाल चुके है उस समय इनकी योग्यता पे कोई प्रश्न चिन्ह नहीं उठा।*
*एवम अदालत ने पूछा कि "आप इन्हें कम वेतन दे रहे थे तब तो इनकी योग्यता पर सवाल नही उठाए और आज जब यह "समान काम समान वेतन" की मांग करने लगे है तो इनकी योग्यता पर सवाल उठा रहे हैं। यह व्यवस्था ठीक नहीं है।*
*इसके बाद सरकारी अधिवक्ताओं ने बिहार सरकार के वित्तीय संसाधन का हवाला देना शुरू किया । कहा उनके एरियर पर Rs-50,000/- करोड़ खर्च करने होंगे जो राज्य सरकार के बस की बात नहीं है।*
*इतना ही नहीं "समान काम समान वेतन" लागू करने पर प्रतिवर्ष Rs-28,000/- करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।*
*सरकारी अधिवक्ता के इस तर्क को सभी अधिवक्ताओं ने पुरजोर विरोध किया। शिक्षकों की ओर से अधिवक्ताओं ने इस आंकड़े को सरासर गलत करार देते हुए कहा कि राज्य सरकार झूठ बोल रही है। समान वेतन देने पर मात्र Rs-9,800/- करोड़ रुपए खर्च करने होंगे।*
*वही एरियर के रूप में मात्र Rs-7,000/- करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी एवम सबसे बड़ी बात यह है कि यह पूरी राशि राज्य सरकार को ही खर्च नहीं करनी है बल्कि केंद्र सरकार केंद्रांश के रूप में शिक्षा के बजट का 60% राशि देती है।*
*अधिवक्ताओं ने कहा कि बीते कई वर्षों में राज्य सरकार केंद्र से प्राप्त पूरी राशि का उपयोग नहीं कर सकी एवम उस राशि को वापस करना पड़ा।*
*एक ओर जहाँ राज्य सरकार पैसे का उपयोग नहीं कर पा रही है,एवम उसे सरेंडर करना पड़ रहा है। दूसरी ओर पैसे का रोना कोर्ट में रोया जा रहा है। साथ ही शिक्षकों को "समान काम समान वेतन" देने से इनकार किया जा रहा है। यह बिल्कुल राज्य सरकार की मनमानी है।*
*राज्य सरकार के अधिवक्ताओं द्वारा वित्तीय कमी का रोना रोये जाने पर एक बार अदालत ने प्रस्ताव रखा कि यदि राज्य सरकार नियोजित शिक्षकों को आज की तिथि से भी समान वेतन देने की घोषणा कर दे तो एरियर के मुद्दे को समाप्त किया जाए लेकिन राज्य सरकार के अधिवक्ता इस पर राजी नहीं हुए एवम उन्होंने कोर्ट के उस प्रस्ताव पर बिना कोई टिप्पणी किए अपने बहस को जारी रखा।*
*साथ ही धीमे स्वर में अदालत ने टिप्पणी भी की कि शायद सरकार एरियर भी देना चाह रही है।*
*अदालत के इस रूख से स्पष्ट है कि अदालत शिक्षकों के पक्ष में बात करना चाहती है।किंतु वित्तीय मामलों की संवेदनशीलता को देखते हुए राज्य सरकार को भी पूरा अवसर देना चाहती है। सरकार के अधिवक्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का शिक्षकों के अधिवक्ताओं के द्वारा पुरजोर विरोध किए जाने पर विवाद की स्थिति बन गई।*
*साथ ही अदालत ने निर्देशित किया कि मुख्य सचिव स्तर के तीन पदाधिकारियों की एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर एक तर्कपूर्ण युक्तियुक्त प्रस्ताव तैयार कर अगली सुनवाई को यथा दिनांक-15.03.2018 को माननीय सुप्रीम कोर्ट,नई दिल्ली में सरकार उपस्थित हो।*
*चूकिं बीच में यह बात आई है कि पिछले कई वर्षों में राज्य सरकार ने केंद्र उसकी राशि का पूरा-पूरा उपयोग नहीं कर सकने के कारण वापस किया है।*
*जिसके बाद कोर्ट ने भारत सरकार को भी पार्टी बनाया है और उससे स्थिति स्पष्ट करने का आदेश दिया है।*
*जब राज्य सरकार के अधिवक्ता शिक्षकों की योग्यता पर सवाल उठा रहे थे तो हमलोगों के अधिवक्ताओं ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद उसके प्रावधानों के आधार पर ही शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है।*
*दिनांक:-01.04.2010 को "शिक्षा का अधिकार अधिनियम" लागू होने के पश्चात जिन शिक्षकों की नियुक्ति की गई है उसके आधार पर हीं वर्तमान में शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है।*
*साथ ही दिनांक:-01.07.2006 को जिन "शिक्षा मित्रों" को "नियोजित शिक्षक" बनाया गया एवम दिनांक:-01.04.2010 की पहले नियुक्त किया गया। वह उस समय की नियमावली के अनुकूल है।*
*अत: किसी भी साथी को अपनी योग्यता को लेकर मन में भ्रम या संशय पालने की जरूरत नहीं है। फैसला हम लोगों के पक्ष में ही होगा और हम सब एक है खण्डित नहीं होना है न दिग्भर्मित होना है हम जीत चुके है अर्थात सरकार के दिए सभी दलीलों को अदालत ने सीरे से खारिज किए और कहे हाई कोर्ट के द्वारा दिए फैसले सही है।*
*"रख हौसला 15 मार्च वो मंजर भी आएगा!*
*"हमसबों के पास चलकर बिहार सरकार भी आएगा!!"*
*"संसय में न रह ऐ शिक्षक साथियों,मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा!!*
*"समान काम समान वेतन"*
*शिक्षक एकता ज़िंदाबाद।*
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